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Covid-19

कोरोना ने जीना सिखाया, ‘बुरा न’ महसूस करना सिखाया
तीन महीने पहले पत्नी सरिता और दोस्तों ने कहा, “रोगी देखना बन्द करो, अपने को बचाओ।”
लेकिन इस कोरोना युद्ध में सैनिक का धर्म निभाने का अहसास था, कैसे बन्द कर देता पेशैन्ट देखना ?
जब सैनिक का काम करेंगे तो चोट तो लगेगी ही और मैं हो गया,कोरोना पॉज़ीटिव !
पहले दिन
पन्द्रह फ़ोन आये; सर्वे टीम से, थाने से, सीआईडी से, सीएमएचओ आदि से
बार-बार, एक ही सवाल, कोरोना पोजीटिव हो, आपका पता क्या है?
कोरोना ने जीना सिखाया, ‘बुरा न’ महसूस करना सिखाया।

अच्छा लगा, जब सीएमएचओ टीम के डाक्टरों ने फूल देकर होम आइसोलेशन किया।
कई लोग रोज़ घूमते थे, मेरे घर के सामने की सड़क पर।
अब नहीं दिखे, तो चिन्ता हुई|
फ़ोन करने पर मालूम हुआ, घूमने की सड़क बदल दी।
कुछ लोग चलते थे, मेरे घर के पास वाली पटरी पर।
अब चलते हैं, सड़क पार दूसरी ओर की पटरी पर।
स्वीपर घर पर आती नहीं, पुकारते हैं तो सुनती नहीं|
कपड़े धोने वाली को हमने अपनी ओर से मना कर दिया|
अगले दिन उसका फ़ोन आया, सबने उसे आने से मना कर दिया|
पत्नि सरिता पानी और खाना देने तो आती है,  लेकिन डबल मास्क लगा कर आती है और मेरे कमरे में साँस रोक कर रखती है।
कोरोना ने जीना सिखाया, ‘बुरा न’ महसूस करना सिखाया।

तभी नज़र गई खिड़की पर, बारिश की बूँदों पर,मेरे घर को उन्होंने टाला नहीं|
नज़र पड़ी सूरज की किरणों पर, मेरी खिड़की से घर में आना छोड़ा नहीं|
तभी खिड़की से आई बारिश की हवा ने मेरे बदन को धीरे से छुआ, छोड़ा नहीं|
नज़र पड़ी, खिड़की से बाहर लगे हरे भरे पेड़-पौधों पर|
आज भी वहीं खड़े, मेरा अभिवादन करते हैं।
कोरोना ने जीना सिखाया, ‘बुरा न’ महसूस करना सिखाया।

जीवन में पहली बार जाना, तिरस्कार किसे कहते हैं?
मन अपना जब टटोला तो पाया, मैं भी तो ऐसा ही करता था!
करता था तिरस्कार,
पहले विदेशों से आये अमीरों से,
फिर दिल्ली से आये जमातियों से,
और फिर बस और ट्रेनों से आये मज़दूरों से,
और आज वही तिरस्कार मेरे लिये झलकता देखा है, दोस्तो।
और तो और कोरोना का कोई रोगी जब आता था तो भय के कारण मेरे व्यवहार में भी तिरस्कार झलकने लगता था।
निश्चय किया,अब मेरे व्यवहार में स्नेह झलकेगा, तिरस्कार नहीं|
कोरोना ने जीना सिखाया, ‘बुरा न’ महसूस करना सिखाया।

पेशैन्ट्स के फ़ोन, जीने का मक़सद बताते हैं।
देशभक्त निशान्त और रिश्तेदारों के फ़ोन, हौसला बढ़ाते हैं।
शुभचिन्तकों के फ़ोन, मन को मज़बूत करते हैं।
बच्चों, पापा- मम्मी और परिवार जन के फ़ोन दिल को छूते हैं।
दोस्तों के चटपटे फ़ोन बड़े अच्छे लगते हैं,आनन्दित करते,गुदगुदाते हैं।
आज जब मेरी और सभी की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई तो समझा,
अरे यही तो सोशियल डिस्टेन्सिंग थी! नतीजा?
मेरे से किसी को नहीं फैला कोराना।
अब कर पाऊँगा ज़्यादा अच्छी पेशैन्ट केयर और दे पाऊँगा प्लाज़्मा भी दान।
कोरोना ने जीना सिखाया, ‘बुरा न’ महसूस करना सिखाया।
डा वीरेन्द्र सिंह
अध्यक्ष
अस्थमा भवन एवं राजस्थान अस्पताल

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